भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का प्रारम्भ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना से माना जाता है. भारतीय | राष्ट्रवाद, सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक, विविध शक्तियों और कारणों के संयोग का परिणाम था.
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन me राष्ट्रीय चेतना जगाने में प्रेस की भूमिका महत्वपूर्ण थी. अखवारों का दृष्टिकोण सरकार के प्रति हमेशा ही आलोचनात्मक रहा. सरकार के द्वारा अनेक दमनात्मक कानून चलाए गए फिर भी प्रेस राष्ट्रीय चेतना को जगाने में सफल रहा जिन अखबारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई-हिन्दू पैट्रियाट, इण्डियन मिरर, बम्बई समाचार, द हिन्दू, बॉम्बे, क्रॉनिकल, आदि.
अग्रेजों द्वारा सेना सरकारी नौकरियों उद्योगों आर्थिक क्षेत्रों में भारतीयों के प्रति अपनायी जाने वाली भेदभावपूर्ण नीति ने भी भारतीयों में राष्ट्रवाद को जन्म दिया.
लिटन का वर्नाकुलर प्रेस एक्ट, आर्स एक्ट, आई.सी.एस परीक्षा की आयु में कमी, द्वितीय-अफगान युद्ध, दिल्ली में भव्य दरबार का आयोजन (1877) आदि भारतीय राष्ट्रवाद को जन्म देने वाले तात्कालिक कारण थे.
भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण इस प्रकार हैं
1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के परिणाम ने ब्रिटिश शासन, के विद्रोह का दमन करने में अमानुषिक कार्यवाही की थी. दमन की इस अमानुषिक कार्यवाही ने सभी भारतीयों के मन में यह भावना भर दी कि अंग्रेजी शासन को जड़-मूल से उखाड़ फेंक दिया जाना चाहिए.
• धार्मिक और सामाजिक सुधार आन्दोलन ने राष्ट्रीयता के उदय में बड़ा योगदान दिया, ब्रह्म समाज के प्रवर्तक राजा राममोहन राय ने धर्म को आधुनिकता के सांचे में ढालकर
भारतीय समाज में नवीन जीवन का संचार किया. ब्रह्म समाज, आर्य, वेदान्त दर्शन, मिशन तथा थियोसॉफिकल सोसायटी जैसी संस्थाओं ने धार्मिक और सामाजिक जीवन में एक क्रान्ति का सूत्रपात किया जिसके फलस्वरूप धर्म के प्रति अन्धविश्वास और रूढ़िवादी दृष्टिकोण समाप्त हुआ. धार्मिक और सामाजिक सुधार आन्दोलन द्वारा राष्ट्रीय आन्दोलन की पृष्ठभूमि तैयार की गई. रामकृष्ण
पाश्चात्य शिक्षा यूरोप में राष्ट्रीयता, व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, उदारवाद और स्वशासन के विचार सदैव ही प्रबल रहे हैं, अतः पाश्चात्य शिक्षा ने भारतीयों के सम्मुख नवीन आदर्श उपस्थित किए.
यातायात साधनों की उन्नति रेल, डाक, तार, और सड़कों आदि की उन्नति ने भी सारे देश को एक सूत्र में बाँध दिया तथा राष्ट्रीय नेताओं को विभिन्न स्थानों का भ्रमण कर चेतना जाग्रत करने के शीघ्रगामी साधन प्राप्त हुए.
भारतीय समाचार पत्र और साहित्य इन समाचार-पत्रों ने जनसाधारण का ध्यान देश की दुर्दशा की ओर आकर्षित किया और विदेशी शासन को दोषपूर्ण नीति से देश को अवगत कराया. उस समय के भारतीय समाचार-पत्रों में 'बंगदूत', 'अमृत बाजार पत्रिका', 'ट्रिब्यून' और 'पायनियर' विशेष रूप से उल्लेखनीय है भारतीय साहित्य ने भी जिसमें बांग्ला साहित्य का नाम विशेष रूप से लिया जा सकता है. ब्रिटिश शासन के द्वारा राजनीतिक एकता की स्थापना प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से किया गया था लेकिन इसके परिणामस्वरूप सम्पूर्ण देश पहली बार राजनैतिक दृष्टि से एक इकाई बन गया.
लॉर्ड लिटन के शासनकाल में आयात कर को पूर्णतया समाप्त कर ‘मुक्त व्यापार नीति' को अपनाया गया, जिसके परिणामस्वरूप आर्थिक असन्तोष व्याप्त हुआ और भारतीय उद्योग-धन्धे नष्ट हो गए और शिल्पकार बेकार हो गए.
मध्यम वर्ग का योगदान भारतीय समाज में एक ऐसे मध्यम वर्ग का उदय हुआ जिसमें वकील, शिक्षक, डॉक्टर, उद्योगपति तथा उच्च वर्ग व्यापारी सम्मिलित थे.ये लोग शिक्षित एवं महत्वाकांक्षी थे. उनमें नेतृत्व करने की योग्यता तथा तीव्र इच्छा थी.
लार्ड लिटन ने अपने शासनकाल में ऐसी अनेक राजनीतिक भूलें की जिनसे भारतीय राष्ट्रीयता को प्रोत्साहन मिला. लार्ड लिटन ने 1877 में महारानी विक्टोरिया को नई उपाधि 'केसर-ए-हिन्द, भारत साम्राज्ञी' से विभूषित करने के लिए दिल्ली में एक शानदार दरबार किया. 1878 में ताम्गलर प्रेस अधिनियम' लागू किया, जिसके द्वारा भारतीय भाषाओं के समाचार-पत्रों पर अनेक प्रतिबन्ध लगा दिए गए.
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