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🔸1857 का विद्रोह(Revolution of 1857)
भारत में अंग्रेजों की साम्राज्य विस्तार एवं आर्थिक शोषण की घृणित नीतियों के परिणामस्वरूप समाज के विभिन्न वर्गों में ब्रिटिश शासन के प्रति जनअसंतोष उभर रहा था। भारतीयों का रोष विभिन्न स्थानों पर सैनिक विद्रोहों अथवा जन विद्रोहों के रूप में समय-समय पर दृष्टिगोचर होता रहा। अंतत: यह असंतोष एक प्रचण्ड जनविद्रोह के रूप में सन् 1857 में प्रकट हुआ। जो वस्तुतः ब्रिटिश नीतियों के विरूद्ध जनता की संचित शिकायतों एवं असंतोष की उपज था। इस विद्रोह ने ब्रिटिश शासन की जड़ों को हिला दिया। यद्यपि इसका आरंभ सिपाही असंतोष से हुआ किन्तु शीघ्र ही एक व्यापक क्षेत्र के लोग इसमें शामिल हो गए।
1.विद्रोह के कारण
1.आर्थिक कारण : अंग्रेजों द्वारा ब्रिटिश व्यापारियों एवं उद्योगपतियों के पक्ष में अपनाई जाने वाली आर्थिक व भू राजस्व नीतियों ने देश के पारंपरिक आर्थिक ढांचे का पूर्णतया विनाश कर दिया। इन नीतियों ने कृषकों, दस्तकारों, हस्तशिल्पियों तथा बड़ी संख्या में परम्परागत जमींदारों, मुखियों को निर्धन बना दिया। निचले स्तर पर फैले प्रशासनिक भ्रष्टाचार ने आम आदमी को बुरी तरह प्रभावित किया। साथ ही जटिल न्याय प्रणाली के कारण गरीब लोग धनिकों के शोषण का शिकार बनते गए।
2.देशी रजवाड़ों के नष्ट होने से अनेक कलाकार, विद्वान एवं धार्मिक उपदेशक राजकीय संरक्षण से वंचित हो गए जिससे इनकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई।
2.राजनीतिक कारण :
1.अंग्रेज भारत में सदैव विदेशी बने रहे उनके और भारतीय लोगों के बीच कोई सामाजिक संबंध या सम्पर्क नहीं रहा। पहले के विदेशी शासकों की तरह अंग्रेजों ने उच्च वर्गों के भारतीयों से भी सामाजिक मेल जोल नहीं बढ़ाया। उल्टे वे प्रजाति श्रेष्ठता के नशे में चूर रहे।
1.अंग्रेजों द्वारा देशी राज्यों पर प्रभावकारी नियंत्रण के लिए अपनाए जाने वाले अनुचित तरीकों को भारतीय समाज के सभी वर्गों ने नापंसद किया।
2.नाना साहब की पेंशन समाप्त करने तथा बहादुरशाह के उत्तराधिकारी को राजकीय उपाधि तथा ऐतिहासिक लाल किले से वंचित कर दिल्ली के एक मामूली मकान में रखने के प्रस्ताव ने जनता को आक्रोशित किया।
3.डलहौजी द्वारा 1852 ई. में बैठाएँ गए इनाम कमीशन(inam commission) की जांच के फलस्वरूप कई राज्यों एवं जागीरों (21,000) को जब्त कर लिया गया। डलहौजी द्वारा अवध को हथियाने से देशी राज्यों में तीखी प्रतिक्रिया हुई जिससे अंग्रेजों की राजनीतिक प्रतिष्ठा को काफी धक्का लगा। इस कार्य से कम्पनी की सेवा में विद्रोह का वातावरण बन गया क्योंकि अधिकांश सिपाही (75,000) अवध के थे। अवध के अधिग्रहण से सिपाहियों की आय पर भी बुरा असर हुआ। फलतः उनके परिवारों को आर्थिक धनाभाव झेलना पड़ा। इस अधिग्रहण से अनेक सैनिक, कुलीन अधिकारी बेरोजगार हो गए। हर किसान के घर में कोई न कोई बेरोजगार हुआ।
4.न्यायालयों में पर्शियन भाषा को हटाकर अंग्रेजी भाषा के प्रयोग से मुसलमान खफा थे।
3. सामाजिक-धार्मिक कारण :
1. ईसाई मिशनरियों द्वारा लंबे समय से चली आ रही लोगों की प्रिय प्रथाओं और परम्पराओं की खुलेआम हंसी उड़ाई गई और भर्त्सना की गई। 1850 ई. में कानून बनाया गया कि ईसाई बनने वाला व्यक्ति अपनी पैतृक संपत्ति पर अधिकार पा सकता है। सरकार अपने खर्च पर सेना में ईसाई उपदेशक या पादरी रखती थी। इन कृत्यों से लोगों में यह भय समा गया कि ब्रिटिश राज्य उनके धर्म के लिए खतरा है। - मंदिरों, मस्जिदों तथा उनके पुरोहितों तथा इमामों तथा लोकोपकारी संस्थाओं की जमीन पर लगान लगने से भी लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची।
2.अंग्रेजों द्वारा अपनाए गए सती प्रथा का उन्मूलन एवं शिशु हत्या पर रोक जैसे मानवतावादी कदमों ने समाज के रूढ़िवादी वर्ग को नाराज कर दिया। इस वर्ग की मान्यता थी कि एक विदेशी ईसाई सरकार को उनके धर्म एवं रीति-रिवाजों में हस्तक्षेप करने एवं सुधार लाने का कोई अधिकार नहीं है।
3.सामाजिक दृष्टि से अंग्रेज अपने को उच्च नस्ल का मानकर भारतीयों को बहुत हेय दृष्टि से देखते थे।
4.रेलगाड़ी के प्रथम श्रेणी के डिब्बे में भारतीयों के लिए यात्रा वर्जित थी। सार्वजनिक स्थानों पर भारतीयों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता था। अंग्रेज न्यायाधीश पक्षपातपूर्ण निर्णय देते थे। अंग्रेज सैनिकों की तुलना में भारतीय सैनिकों को निम्न वेतन, निकृष्ट भोजन दिया जाता था। ये सभी सामाजिक कारण भारतीयों के लिए असहनीय थे।
4.सैनिक कारण :
1.ब्रिटिश अधिकारी द्वारा भारतीय सिपाहियों के साथ तिरस्कारपूर्ण व्यवहार करते थे। सिपाहियों के वेतन तथा पदोन्नति में भेदभाव के कारण कोई भी भारतीय सूबेदार के पद से ऊपर नहीं जा सकता था।
2.एक नए आदेश के द्वारा सिंध या पंजाब में लड़ते समय सिपाहियों को विदेशी सेवा भत्ता न दिए जाने की घोषणा ने उनमें असंतोष उत्पन्न कर दिया।
3.अधिनियम बनाकर सिपाहियों को जाति एवं पद सम्बन्धी चिन्ह (चंदन, टीका, दाढ़ी, पगड़ी) रखने से रोका गया एवं उन्हे समुद्र पार जाकर काम करने को कहा गया। इसे सिपाहियों ने अपने धर्म में हस्तक्षेप माना।
4. प्रथम अफगान युद्ध (1838), आंग्ल-सिक्ख युद्ध (1847) तथा क्रीमिया के युद्ध में (1854-56) अंग्रेज सेनाओं की पराजय से लोगों को लगने लगा कि अब ब्रिटिश शासन के बहुत कम दिन रह गए हैं। एक एशियाई सेना भी डट कर लड़ अंग्रेजों को हटा सकती है।
सिपाही कुछ भी हो भारतीय समाज के अंग थे इसलिए दूसरे भारतीयों पर जो कुछ गुजरती थी उसे ये भी कुछ हद तक महसूस कर दुखी होते थे। किसानों की आशाएं, इच्छाएं एवं दुख दर्द इन सिपाहियों के बीच भी प्रतिबिम्बित होते थे। यह सिपाही दरअसल 'वर्दीधारी किसान' ही था।
5. तात्कालिक कारण :
1.पुराने लोहे वाली ब्राउन बैस बंदूक के स्थान पर नई एनफील्ड रायफल के प्रयोग करने का ब्रिटिश सरकार ने निर्णय लिया जिसमें चिकनाई लगे कारतूसों को दांत से काटना पड़ता था। कतिपय परिस्थितियों में इन चिकनाईयों में गोमांस और सूअर की चर्बी मिली होती थी इससे हिन्दू और मुसलमान सिपाहियों को यह विश्वास हुआ कि सरकार जान बूझकर उनके धर्म को नष्ट करना चाह रही है।
5.विद्रोह का आरंभ एवं प्रसार :
26 फरवरी 1857 को बहरामपुर के सैनिकों ने इन कारतूसों का प्रयोग करने से इंकार कर दिया। कैनिंग ने इस सैन्य टुकड़ी को भंग कर दिया। फलतः अन्य टुकड़ियों में असंतोष फैला।
29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी के सैनिक मंगल पाण्डे ने अंग्रेज अधिकारियों की हत्या कर दी। फलतः उसे फांसी की सजा दी गई तथा सेना की उस टुकड़ी को भंग कर दिया गया।
24 अप्रैल 1857 को मेरठ छावनी के 85 सैनिकों ने इन कारतूसों का प्रयोग करने से इनकार कर दिया। अत: 9 मई को उन्हे बर्खास्त कर 10 साल कैद की सजा दी गई।
10 मई 1857 को मेरठ में तैनात भारतीय सेना ने विद्रोह कर दिया और 11 मई को मेरठ की विद्रोही सेना दिल्ली पहुंची। मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर को भारत का सम्राट एवं अपना नेता घोषित किया और दिल्ली पर अधिकार किया। शीघ्र ही विद्रोह उत्तर भारत, मध्य भारत से लेकर पश्चिम में राजस्थान तक एक विस्तृत भू-भाग में फैल गया। दक्षिण में विद्रोह का सीमित प्रसार रहा।
• कानपुर में नाना साहब, झांसी में लक्ष्मीबाई, लखनऊ में बेगम हजरत महल, जगदीशपुर में कुंअर सिंह आदि ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया।
उत्तर एवं मध्य भारत में जगह-जगह सिपाही विद्रोह के साथ-साथ नागरिक विद्रोह भी हुए। किसानों, दस्तकारों, दुकानदारों, मजदूरों, छोटे जमींदारों, ग्रामीण जनता एवं साधारण निम्नवर्गीय जनता ने विद्रोह का समर्थन किया। आम जनता हथियार लेकर उठ खड़ी हुई और भालों तीर कमानों व देशी बंदूकों लड़ती रही।
के साथ " किसानों, दस्तकारों, मजदूरों की व्यापक भागीदारी ऐसी चीज थी जिसने विद्रोह को वास्तविक शक्ति जन विद्रोह का चरित्र भी दिया।
6. 1857 की युद्ध का परिणाम या प्रभाव
👉यद्यपि विद्रोह पूर्णतः दबा दिया गया परन्तु इसने ब्रिटिश शासन के प्रतिरोध की शानदार स्थानीय परम्पराएं कायम की तथा भावी स्वाधीनता संग्राम में भारतीय जनता के लिए प्रेरणा का एक अक्षुण्ण स्त्रोत प्रदान किया। 1857 के विद्रोह के पश्चात् भारत में अंग्रेजी शासनकाल का एक युग समाप्त और दूसरा युग प्रारंभ होता है। आगे आने वाले समय में अंग्रेजों ने प्रशासन, सेना, भारतीय नरेशों के प्रति नीति, सामाजिक परिवर्तन, शिक्षा नीति आदि सभा में गंभीर परिवर्तन किए जिसके कारण माना जा सकता है कि विद्रोह के पश्चात् भारत में अंग्रेजी शासन का एक नवीन युग प्रारंभ हुआ। संवैधानिक दृष्टि से मुगल साम्राज्य हमेशा के लिए समाप्त हो गया। भारत में एक शताब्दी से शासन करने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन की समाप्ति हो गई और भारत में इंग्लैंड की महारानी
विक्टोरिया यानी ब्रिटिश काउन का सीधा शासन स्थापित हो गया।
1. प्रशासनिक परिवर्तन : 21 नवम्बर 1858 ई. को महारानी विक्टोरिया की घोषणा हुई जिसे 1858 के अधिनियम द्वारा व्यावहारिक
रूप दिया गया। इसके अनुसार सम्पूर्ण प्रशासनिक व्यवस्था को परिवर्तित कर दिया गया। ईस्ट इंडिया कंपनी से लेकर भारत का शासन ब्रिटिश काउन के हाथो में दे दिया गया।
2.1866 में यह आयु पुनः घटाकर 21 वर्ष कर दी गई। इसी तरह प्रशासन के दूसरे विभागों जैसे पुलिस, सार्वजनिक निर्माण, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, कस्टम, रेलवे और बड़े और अधिक वेतन पाने वाले पद ब्रिटिश नागरिकों के लिए सुरक्षित रखे जाते थे।
3. मुसलमानों के प्रति नीति में परिवर्तन :
1857 के विद्रोह में हिन्दू-मुसलमानों ने एकजुट होकर भाग लिया था। अतः 57 के पश्चात् अंग्रेज सरकार ने इस संबंध को अलग करने की नीति पर विशेष ध्यान दिया।
अंग्रेजों ने मुसलमानों के प्रति घृणा की नीति अपनाई, मुसलमानों का दमन करना और बड़े पैमाने पर उनकी जमीन जायदाद जब्त करना प्रारंभ कर दिया। यह नीति 1870 तक स्पष्ट रूप से रही और आगे उलट दी गई तथा उच्च एवं मध्यवर्गीय मुसलमानों को राष्ट्रवादी आंदोलन के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश की गई।
मुस्लिमों के प्रति अपनाई गई यह नीति बांटो और राज करो की नीति का अंग थी। 6. शिक्षित भारतीयों के प्रति नीति में परिवर्तन :
1857 के विद्रोह में शिक्षित भारतीय वर्ग की तटस्थता से अंग्रेज अधिकारियों ने उनकी प्रशंसा की थी, किन्तु शीघ्र ही यह अनुकूल सरकारी दृष्टिकोण उलट गया क्योंकि अनेक शिक्षित भारतीय ब्रिटिश साम्राज्यवादी चरित्र का विश्लेषण करने लगे, प्रशासन में भारतीयों की भागीदारी की मांगे रखी और जनता के बीच राष्ट्रवादी आंदोलन के संगठन का आधार तैयार करने का प्रयास शुरू किया। अब सरकारी अधिकारी उच्च शिक्षा के पक्के दुश्मन बन बैठे। 7. जमींदारों के प्रति नीति :
4. जमींदारों और भू स्वामियों के प्रति मित्रता का हाथ बढ़ाया गया। अवध के अधिकांश ताल्लुकेदारों को उनकी जमीनें लौटा दी गई।
5. समाज सुधार के प्रति नीति :
अंग्रेजों ने समाज सुधार (सती प्रथा उन्मूलन, विधवा विवाह आदि) को 1857 के विद्रोह का एक प्रमुख कारण माना। इसलिए धीरे-धीरे ब्रिटिश ने रूढ़िवायिों का पक्ष लेना आरंभ कर दिया तथा समाज सुधारकों का समर्थन बंद कर दिया। ,
7.1857 की लड़ाई के असफलता के कारण,
विद्रोह असफल रहा, क्यों? (कारण)
📌विद्रोह का विस्तार सीमित : विद्रोह पूरे देश के सभी क्षेत्रों में समान रूप से नहीं फैला। यह मुख्यतः उत्तरी एवं मध्य भारत के कुछ हिस्सों तक सीमित रहा। बंगाल, पंजाब, कश्मीर, दक्षिण भारत के अधिकांश भागों में इसका विस्तार नहीं हुआ। फलत: अंग्रेजों ने सीमित क्षेत्र में होने वाले इस विद्रोह को कुचल दिया।
📌देशी नरेशों एवं सामंतों का असहयोग : भारतीयों सामंतों एवं नरेशों का एक बहुत बड़ा वर्ग न सिर्फ इस विद्रोह से अलग रहा बल्कि कईयों ने अंग्रेजों की मदद भी की। सिंधिया, होल्कर, निजाम, जोधपुर के राजा, पंजाब के सिक्ख सरदार तथा अनेक बड़े जमींदारों ने अंग्रेजों की सहायता की। भारतीय शासकों में 1% से अधिक विद्रोह में शामिल नहीं हुए।
📌जनसमर्थन का अभाव : भारतीय समाज का उच्च एवं मध्यम शिक्षित वर्ग तथा धनी तबके के लोग इससे अलग रहे। असंतुष्ट तथा बेदखल जमींदारों को छोड़कर उच्च एवं मध्य वर्ग के अधिकांश लोग विद्रोहियों के आलोचक थे। व्यापारी एवं सूदखोरों ने अंग्रेजों का साथ दिया।
📌योग्य नेतृत्व का अभाव : विद्रोही नेता एकजुट और संगठित होकर विद्रोहियों का नेतृत्व नहीं कर सके। इसके विपरीत अंग्रेजों को निकोल्सन, आउट्रम, हेवलॉक, हडसन इत्यादि का योग्य नेतृत्व मिला। . विद्रोहियों के सीमित साधन : विद्रोहियों के पास धन जन एवं शस्त्रों का अभाव था। इसके विपरीत कंपनी को अर्थ-धन की कमी न थी। अंग्रेजों ने रेल, डाक-तार एवं सामुद्रिक मार्ग का भी लाभ उठाकर आवश्यकतानुसार सेना एक जगह से दूसरी जगह विद्रोहियों के दमन के लिए भेजी। विद्रोहियों को आवागमन के साधनों एवं समाचार पहुंचाने के साधनों का अभाव था। अत: वे शीघ्र कोई कारवाई नहीं कर पाए।
📌निश्चित उद्देश्य की कमी : इस विद्रोह के पीछे न कोई रचनात्मक विचारधारा थी, न कोई भविष्य के लिए योजना, न उच्चतर समाज व्यवस्था का कोई स्वप्न था, और न ही बेहतर राजपद्धति का। उनके सामने यह निश्चित नही था कि वे कांति की सफलता के पश्चात् क्या करेंगे?
📌अंग्रेजी के अनुकूल परिस्थिति : विद्रोह के समय अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति अंग्रेजों के सर्वथा अनुकूल थी। चीन एवं क्रीमिया के युद्ध समाप्त हो चुके थे और वहां से बहुत बड़ी सेना अंग्रेजों की सहायता के लिए पहुंची। फलत: वे विद्रोह का दमन करने में सफल रहे।
📌ब्रिटिश साम्राज्यवाद का शक्तिशाली पक्ष : दुनिया भर में शक्ति के शिखर पर बैठा विकासमान पूजीवादी अर्थव्यवस्था से युक्त ब्रिटिश साम्राज्यवाद भारत में अपना अधिकार बनाए रखने के लिए कटिबद्ध था। उन्होने सारे साम्राज्य के साधनों का उपयोग किया जबकि भारतीय व्यक्तिगत वीरता एवं साहस के बल पर विरोध करते रहे उन्हें अपने राज्य के लिए भी पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं हुए।
📍📍Main exam Questions 📍📍
Q. 1857 का विद्रोह क्या था?
Q. 1857 का विद्रोह क्यों हुआ?
Q. सिद्ध कीजिए 1857 का विद्रोह एक सैनिक विद्रोह था?
Q. 1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण क्या था टिप्पणी कीजिए?
Q. 1857 के युद्ध में भारतीय एकता को बढ़ावा दिया?
Q. 1857 के विद्रोह के असफलता के क्या कारण थे?
Q. 1857 के विद्रोह ने भारतीयों को एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया सिद्ध कीजिए?
Q. 1857 का विद्रोह ने तो प्रथम था, ने राष्ट्रीय,न स्वतंत्रता संग्राम सम आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए?
Q. 1857 के विद्रोह की प्रकृति का वर्णन कीजिए
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