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रेलवे का विकास| भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में रेलवे का योगदान| Indian railway |important fact of railway

📍📍 दोस्तों इस लेख के माध्यम से हम भारतीय इतिहास में रेलवे के महत्व पर चर्चा करेंगे ,जानेंगे कि किस प्रकार रेलवे ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया |



 रेलवे का विकास

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 📍ब्रिटिशकालीन भौतिक साधनों की वृद्धि में रेलवे प्रणाली के विकास को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया। * भारत के लिए सर्वप्रथम भाप रेलगाड़ियों की योजना 1843 में इंग्लैंड में तैयार की गई। गवर्नर जनरल लॉड हार्डिग ने कई तथ्यों के मद्देनजर रेल पथों के निर्माण को उपयोगी बताया। 1849 में भारत सचिव ने ईस्ट इंडिया रेलवे कंपनी (E.I.R.C.) तथा ग्रेट इंडिया पेनान्सुलर रेलवे कंपनी (GI.P.) के साथ पहले रेलवे के करारनामे पर हस्ताक्षर किए गए। 



🔸1853 में पहली रेल लाईन बम्बई से थाने तक खोली गई।


🔸1869 के अंत तक 6000 किमी से अधिक लाइन बिछ चुकी थी। किन्तु यह प्रणाली अत्यधिक खर्चीली साबित हुई।


🔸1869 में भारत सरकार ने सरकारी उद्यम के रूप में नई रेल लाइनें बिछाने का फैसला किया। किन्तु अभी भी रेलों के प्रसार की गति भारत के अधिकारियों एवं ब्रिटेन के व्यापारियों को संतुष्ट न कर सकी। - अतः 1880 के बाद निजी कंपनियों एवं सरकार दोनों ने मिलकर रेल लाइनें बिछाई। + 1905 तक लगभग 45,000 किमी लंबी रेल लाइनें बिछाई जा चुकी थी।


🔸रेलवे के विकास के महत्वपूर्ण पहलू :


🔸इन रेल लाइनों के विकास में 350 करोड़ से अधिक की पूंजी लगी थी। यह पूंजी पूरी की पूरी ब्रिटिश पूंजी निवेशकों की थी।


" कंपनियों को रेलवे के निवेश पर 5% के लाभांश की गारंटी दी गई। आरंभ के 50 वर्षों में इनसे वित्तीय घाटा ही होता रहा तथा वे लगने वाली पूंजी पर ब्याज तक नहीं दे सकती थी। प्राइवेट कंपनियों ने जो रेल लाइन बिछाई थी उनका घाटा तो भारत सरकार ने पूरा किया क्योंकि वह लगाई गई पूंजी पर एक निश्चित लाभ देने की गारंटी दे चुकी थी। रेलों की योजना तैयार करते समय उनका निर्माण करते तथा उनके प्रबंध में भारत और उसकी जनता के आर्थिक राजनीतिक विकास को अधिक महत्व नहीं दिया गया।


उद्देश्य :  ब्रिटिश साम्राज्यवाद के आर्थिक, राजनैतिक तथा सैनिक हितों की पूर्ति हो सके।

🔸कृषि उत्पादन (कच्चे माल) के मुख्य निर्यात केन्द्रों को महत्वपूर्ण बंदरगाहों से जोड़ना ताकि कच्चा माल और खाद्यान्न इंग्लैंड पहुंच सके।


🔸ब्रिटिश औद्योगिक वर्ग के लिए एक विशाल मंडी उपलब्ध करना ताकि ब्रिटिश वस्तुओं की पहुंच एवं बिक्री भारत के विभिन्न स्थानों पर सुगमतापूर्वक हो सके।


📍उपद्रव को दबाने हेतु सेनाओं का तीव्र आवागमन सुनिश्चित करना अर्थात् ब्रिटिश सेना की सहायता से भारत को राजनैतिक रूप से अधीन बनाए रखना।


🔸इन उद्देश्यों की पूर्ति के पक्ष में लॉर्ड डलहौजी और चार्ल्स वुड ने रेल विस्तार को अनिवार्य बताया। वुड ने रेलों के विस्तार का समर्थन इसलिए किया था कि भारत के कपास उत्पादक क्षेत्रों से निर्यात बढ़ सकेगा और इंग्लैंड की संयुक्त राज्य अमेरिका पर निर्भरता कम होगी।


📍📍रेल विकास एवं भारत का आधुनिकीकरण :


🔸मार्क्स ने 1853 में यह भविष्यवाणी की कि "आधुनिक औद्योगीकरण रेल मार्ग से आएगा।" रेलवे के विकास ने भारत के औद्योगीकरण एवं उसकी

ह इस संदर्भ में मार्क्स ने कहा जिस देश में लोहा और कोयला प्राप्त हो वहां के परिवहन तंत्र में मशीनों का इस्तेमाल शुरू हो जाने के बाद उस देश द्वारा खुद मशीनों के निर्माण को नहीं रोका जा सकेगा। रेलवे की तात्कालिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जिन औद्योगिक प्रक्रियाओं की जरूरत थी, लाए बगैर भारत जैसे बड़े देश में रेल तंत्र का सुचारू रूप से संचालन संभव नहीं था। उद्योग की जिन शाखाओं का रेलवे से सीधा संबंध था, उनमें भी मशीनरी के इस्तेमाल की जरूरत पड़ेगी। अतः रेलवे का प्रादुर्भाव भारत में आधुनिक उद्योगों के आगमन का पूर्व सूचक था।


🔸मार्क्स का यह कथन रेलवे एवं औद्योगीकरण के संदर्भ में सत्य है। ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, आस्ट्रेलिया आदि देशों में रेलवे के विकास से आर्थिक विकास एवं औद्योगीकरण हुआ। किन्तु भारत के संदर्भ में यह प्रक्रिया स्वभाविक रूप से नहीं चल पाई और मार्क्स की उक्ति कमजोर सिद्ध हुई। समृद्धि को प्रोत्साहन नहीं दिया। इसके निम्न कारण थे

रेलवे निर्माण के लिए अंग्रेज कंपनियों को आमंत्रित किया गया। उन्हें रेलवे में पूंजी विनियोग पर 5% निश्चित लाभ की गारंटी दी। जबकि बड़ी संख्या में अंग्रेज पूंजीपति अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा आदि में बिना गारंटी पूंजी लगा रहे थे। इस गारंटी विधि के कारण रेलवे कंपनियों ने फिजूलखर्ची भी की। क्योंकि इस फिजूलखर्ची में भी उनके लाभ की गारंटी निहित थी। गारंटी पद्धति द्वारा रेलों के निर्माण में दुगने से ज्यादा खर्च हुआ ईस्ट इंडिया रेलवे के प्रति मील रेल निर्माण पर 30,000 पाउण्ड का खर्चा हुआ जबकि इंग्लैंड में रेल लाइन निर्माण पर 9000 पाउण्ड/मील खर्च हुआ था। इस तरह लाभांश गारंटी के रूप में भारतीय धन की निकासी हुई।


- रेलवे निर्माण के लिए छोटा से छोटा पुर्जा भी इंग्लैंड से मंगाया जाता था। फलतः भारत में सहायक उद्योगों के विकास को प्रोत्साहन नहीं मिला। इंजन, रेलें, पुलों के लिए इस्पात निर्मित वस्तुएं आदि सभी चीजें ग्रेट ब्रिटेन से आयात की गई। ब्रिटेन में निर्मित 20% से अधिक इंजन को भारत भेजा गया। वस्तुतः 1869 में स्वेज नहर के खुल जाने के बाद समुद्रीय परिवहन में आसानी हुई। यह कार्य और भी सुगम हो गया। जिसका अनुमान 1853 में मार्क्स द्वारा नहीं लगाया जा सका था। इस तरह पारस्परिक श्रृंखला का लाभ इंग्लैंड के लोहा-इस्पात इंजीनियरिंग एवं खनिज उद्योगों को मिल रहा था। फलस्वरूप रेल मार्गों के विकास के साथ दूसरे भारी उद्योगों का स्वाभाविक विकास जो भारत में होना चाहिए था वह नहीं हुआ।


3. इंग्लैंड की जनता का स्वार्थ भारत में रेलवे के विस्तार में निहित था क्योंकि भारत में रेलों से अंग्रेजी माल सस्ते मूल्य पर दूर-दूर तक भेज सकता था। साथ ही लोहे के अंग्रेजी कारखानों का संचालन भी इसी से संभव था इसलिए औपनिवेशिक शासकों ने रेलवे की तुलना में नहरों के विकास को महत्व नहीं दिया।

भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक नियंत्रण सुदृढ़ हुआ।


. औपनिवेशिक शासन की दोहन क्षमता को दूरस्थ क्षेत्रों तक स्थापित कर दिया। साथ ही ब्रिटिश निर्मित वस्तुओं की पहुंच को भी भारत के दूरस्थ क्षेत्रों में संभव बनाया।


, ब्रिटिश आयात निर्यात की मात्रा में वृद्धि हुई।


ब्रिटन के औद्योगीकरण को आधार प्राप्त हुआ, ब्रिटेनवासियों के जीवन में समृद्धि आई। विभिन्न क्षेत्रों में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को बढ़ावा मिला।


रेलवे के विकास ने वाणिज्यीकरण की प्रक्रिया को तीव्र कर दिया।


रेलवे के विकास ने भारत से धन निकासी की प्रक्रिया को तीव्र कर दिया। आधुनिक उद्योगों के विकास के लिए रेलवे ने एक आधार का काम किया।


मूल्य संरचना में अंतर्खेत्रीय भिन्नताओं को कम करने में रेलवे विकास की महत्वपूर्ण भूमिका रही। रेलवे विकास के पूर्व मूल्य संरचना अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग होती थी। इसका कारण यह था कि वस्तुओं की उपलब्धता सीमित थी।


भारत के आंतरिक बाजारों में भी अंतर्संपर्क बढ़ा और वे सभी विदेशी बाजार से जुड़ गए। इस तरह पहले जो भारत था एक दूसरे से अलग बाजार खंडों का देश माना जाता था वह एक राष्ट्र के रूप में परिणत हो गया। जिसके सभी स्थानीय केन्द्र रेल से परस्पर जुड़े हुए थे।


रेलवे के विकास ने भारत में सामाजिक-सांस्कृतिक संबंधों के विकास को प्रोत्साहित किया। रेलवे ने जाति-पात, छुआछूत जैसी सामाजिक कुरीतियों को कमजोर बनाने में भी भूमिका अदा की।


भारतीयों के बीच सम्पर्क बढ़ा। फलतः लोगों में परस्पर विचार विनिमय में सुगमता हुई सामाजिक-राजनीतिक संगठनों के विकास को सहायता मिली एवं राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ।


रेलवे का प्रभाव : आलोचनात्मक परीक्षण


नकारात्मक प्रभाव:


4 अग्रेजों ने भारत में रेलवे का निर्माण मूलतः ब्रिटिश हित को ध्यान में रखकर किया था न कि भारतीय। रेलवे ने यह काम बखूबी से किया भी, ब्रिटिश हित को ही सर्वोपरि रखा। भारतीय धन की निकासी को तीव्रता पहुँचायी।


भारत में अंग्रेजी शासन के खिलाफ उठने वाले विद्रोह को दबाने के लिए सेना भेजने में सहायता पहुंचायी। इस तरह भारतीय राष्ट्रवाद को दबाने में भूमिका निभायी।


+ रेलवे के फलस्वरूप भारत से कच्चे माल का निर्यात हुआ, साथ ही बड़ी मात्रा में खाद्यान्नों को निकासी हुई। फलस्वरूप अकाल की बारबारंता में वृद्धि हुई।


- रेलवे के ऊपर किया गये अत्यधिक खर्च ने भारतीयों के ऊपर ऋण का बोझ बढ़ाया। सकारात्मक प्रभाव:


+ राजनीतिक क्षेत्र : रेलवे के परिणामस्वरूप भारत अब पहले की तुलना में अधिक सुसंगठित राजनीतिक ईकाई के रूप में उभरा। तो प्रशासनिक दृष्टि से प्रशासन की दक्षता में वृद्धि हुई।



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सामाजिक क्षेत्र : जातिबंधन, जातिवाद ढीले पड़ने लगा और छुआछूत का प्रभाव भी कमजोर होने लगा। लोग, रेल के डिब्बों में साथ-साथ दूर-दराज की यात्रा करने लगे। विभिन्न स्टेशनों पर खाना पानी का उपयोग करने लगे। फलतः जाति संकीर्णता की भावना में कमी आई।

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