फ़ॉलोअर

भारत में पत्र मुद्रा| क्षेत्रीय बैंक| रिजर्व बैंक क्या है|ट्रेजरी बिल क्या है| Rbi kya hai

 भारत में पत्र मुद्रा


भारत में 1861 के पूर्व निजी क्षेत्र में कार्य कर रहे द जनरल बैंक ऑफ़ इण्डिया, द बैंक ऑफ़ बंगाल, द बैंक ऑफ़ हिंदुस्तान, ओरियंटल बैंक ऑफ़ कॉमर्स आदि ने विभिन्न देवनागरी लिपियों में कागजी मुद्रा निर्गत की |



→ सरकार में एकाधिकार के अंतर्गत पत्र मुद्रा का निर्गमन 1861 के बाद हुआ |


→ 1935 में पत्र मुद्रा का निर्गमन का दायित्व RBI को दे दिया गया ।


→ 1938 में जोर्ज पंचम के चित्र वाले नोटों के स्थान पर जोर्ज 6 के चित्र वाले नोट जारी किया गये |


> 1947 के बाद जोर्ज 6 के चित्र वाले नोट के स्थान पर अशोक स्तम्भ के सिंहों के चित्र वाले पत्र मुद्रा आई ।


→ 1987 में सबसे पहले महात्मा गाँधी के चित्र वाले 500 रुपए के नोट आये |


1996 से सभी नोटों पर अशोक के स्तम्भ के सिंहों के स्थान पर महात्मा गाँधी के चित्र वाले नोट आये जो अब तक चल रहा है।

RBI के गवर्नर Y.V. रेड्डी के कार्य काल के दौरान 2005 से निर्गमित होने वाले नोटों पर नोटों के निर्गमन वर्ष छपना शुरू हुआ |

→ पहला निर्गमित नोट एक रुपए का था जो 1949 में चलन आया जिसपर सारनाथ स्थित अशोक स्तम्भ छपा था |

एक रुपए का नोट वित मंत्रालय द्वारा निर्गमित होता है पर वित सचिव के हस्ताक्षर होते है | जबकि के रुपए से के नोटों का निर्गमन रिजर्व बैंक के द्वारा होता है तथा नोटों पर RBI के गवर्नर के हस्ताक्षर होते है ।

→ भारतीय रुपया 1957 तक 16 आनों में विभाजित था पर 1957 में मुद्रा की दशमलव प्रणाली अपनाई गई और एक रुपए को 100 समान पैसों में बांटा गया |

रिजर्व बैंक द्वारा निर्गमित सभी नोटों पर हिन्दी और -अंग्रेजी को मिलाकर कुल 17 भाषाओं में लिखा हुआ है |

रुपए के लिए सिम्बल के लिए चयनित चिन्ह की रचना IIT मुम्बई के स्नातकोतर उपाधि प्राप्त उदय कुमार ने की है देवनागरी के 'र' व रोमन अक्षर R से मिलते जुलते प्रतीक चिन्ह को रुपए के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया गया है इस प्रकार भारत अपने रुपए का अलग पहचान रखने वाला विश्व का पांचवा देश बन गया है शेष चार मुद्रायं है .. अमेरिकी डॉलर, ब्रिटिश पाउंड स्टर्लिंग, जापानी येन,यूरोपीय

: यह अत्यंत ही अल्प अवधि वाले फण्ड का बाजार होता है जिसमें बिना किसी प्रत्याभूति के फण्ड का उधार लेना तथा देना होता है | कॉलमनी की माँग मुख्यतया व्यापारिक बैंक द्वारा होती है जो दुसरे बैंकों से अत्यंत ही अल्प समय (1 से 14 दिन) के लिए उधार लेते है जिससे CRR सम्बन्धी अपने पास रखी जाने वाली नकद शेष सम्बन्धी अनिवार्यता के दायित्व को पूरा कर सके | जब उधारी एक दिन की होती है तो उसे कॉलमनी कहते है पर जब उधारी एक दिन से अधिक होती है तो उसे कॉलनोटिस कहते है |

> कॉलमनी मार्केट में प्रचलित होने वाली ब्याज दर फण्ड की पूर्ति तथा फण्ड की माँग पर निर्भर करती है और सामान्यतया कॉलरेट (ब्याज दर जिस पर सौदा होता है) में बहुत ही उग्रता होती है।

> सामान्यतया कॉलरेट को रारभर की दर के रूप में जाना जाता है जिसपर एक बैंक दुसरे बैंक को उधार देता है | इसे USA में फेडरल रेट कहते है | बैंक दर को फेडरल डिस्काउंट रेट भी कहते है ।

→ 1 जुलाई 2011 को RBI द्वारा निर्गत निर्देश के अनुसार उधार लेने तथा उधार देने वाले दोनों रूपों में भाग ले सकते है

1. व्यापारिक बैंक (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक को छोड़कर
2. सहकारी बैंक (भूमि विकास बैंक को छोड़कर )

3. प्राथमिक डीलर |

बैंकों से दिए जाने वाले ऋणों को बहुत अधिक माँग होती है या बैंक को अपनी CRR तथा SLR सम्बन्धी आवश्यकता की पूर्ति तत्काल करनी होती है तो वित्तीय संस्थाएं अपनी तत्कालिक तरलता की माँग को पूरा करने के लिए कॉलमनी मार्केट में उधारी के लिए जाती है | दूसरी और LIC,GIC, UTI बैंक DFHI एवं बड़े बड़े मुचुअल फण्ड, अपने फण्ड कॉलमनी मार्केट में डालते है |

> DFHI (Discount and Finance House of India) स्थापना अप्रैल 1988 तथा STCI (Securities Trading Corporation of India Limited) की स्थापना विशेष रूप से कॉल मार्केट की उग्रता को नियंत्रित करने के लिए की गई है।

भारत में इस समय दो कॉल दर है-- अंत बैंक कॉल दर inter bank call rate) तथा DFHI की उधारी दर |

कॉल दर बैंक दर से ऊपर या नीचे हो सकती है | DFHI द्वारा निर्धारित दर सामान्यतया बैंक दर से ऊपर होती है ।

• RBI परोक्ष रूप से हस्तक्षेप करके कॉल बाजार की रगता में कमी लाता है एवं इसे स्थायित्व प्रदान करता है

→ RBI परोक्ष रूप से हस्तक्षेप करके कॉल बाजार की उग्रता में कमी लाता है एवं इसे स्थायित्व प्रदान करता है | इसके लिए RBI दो उपाय करता है वह DFHI तथा कॉलमनी बाजार की संस्थाओं को अधिक फण्ड उपलब्ध करता है तथा रीपो नीलामी कराता है |

→ ट्रेजरी बिल्स: यह अल्प अवधि की प्रतिभूतियां होती है जिसके माध्यम से सरकार उधार लेती है | इसका निर्गमन सरकार के लिए रिजर्व बैंक द्वारा किया जाता है | वर्तमान में RBI, 91 एवं 364दिन की ट्रेजरी बिल्स निर्गमित करता है इनकी न्यूनतम राशि 25000 रुपया तथा इसी गुणक में होती है।

नोट: भारत में ट्रेजरी बिल्स पहली बार 1917 में निर्गत की गई |

→ एडहोक ट्रेजरी बिल्स: यह सरकार की अत्यंत ही अस्थायी फण्ड सम्बन्धी आवश्यकता की पूर्ति के लिए निर्गमित की जाती है | यह रिजर्व बैंक के नाम से निर्गमित होती है | भारत में इसकी शुरुआत 1955 में की गई थी लेकिन 1997-98 की बजट से इसे बंद कर दिया गया |

नोट : तरलता की दृष्टि से प्रतिभूतियों एवं ऋणों का अनुक्रम क्रमशः नकद, एडहोक ट्रेजरी बिल्स, ट्रेजरी बिल्स एवं कॉलमनी |

मुद्रा बाजार का उपबाजार एक विशेष प्रकार का अल्पावधि प्रतिभूति बाजार है | ये प्रतिभूतियां है कॉल मुद्रा, --

> मुद्रा बाजार का उपबाजार एक विशेष प्रकार का प्रतिभूति बाजार है | ये प्रतिभूतियां है -- कॉल मुद्रा, अल्पावधि के बिल. 182 दिन के ट्रेजरी बिल, जमा प्रमाण पत्र और व्यापारिक पत्र आदि ।

DFHI मुद्रा बाजार की एक विशिष्ट संस्था है जिसकी स्थापना सन 1988 में की गई तथा इसका कार्य बैंकों तथा वितीय संस्थाओं की कटौती और फिर कटौती की आवश्यकताओं को पूरा करना है |

> MMMFs अर्थात मनी मार्केट मुचुअल फंड्स एक अन्य विशिष्ट संस्था है जिसकी स्थापना का उद्देश्य व्यक्तियों को मुद्रा बाजार के उपकरण उपलब्ध कराना था | इसकी स्थापना 1992 में की गई ।

> पूँजी बाजार मुद्रा बाजार से इस बात से भिन्न है कि मुद्रा बाजार अल्पावधि की वितीय व्यवस्था का बाजार है जबकि पूँजी बाजार में मध्यम तथा दीर्घकाल के कोषों का आदानप्रदान किया जाता है।

भारतीय पूँजी बाजार को मोटे तौर पर दो भागों में बांटा जाता है -- गिल्ड एज्ड बाजार और औद्योगिक प्रतिभूति बाजार |

→ गिल्ड एज्ड बाजार में रिजर्व बैंक के माध्यम से सरकारी और अर्द्धसरकारी प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय किया जाता है

→ गिल्ड एज्ड बाजार में सरकारी और अर्द्धसरकारी प्रतिभूतियों का मूल्य स्थिर रहता है और इस क्षेत्र की अन्य प्रतिभूतियों के समान इनमे अस्थिरता नहीं होती है |

→ औद्योगिक प्रतिभूति बाजार में नये स्थापित होने वाले या पहले से स्थापित औद्योगिक उपक्रमों के शेयरों और डिबेन्चरो सरकारी कम्पनियों की प्राथमिक प्रतिभूतियों या नई प्रतिभूतियों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के बांडों के निर्गमों का क्रय विक्रय किया जाता है तो ऐसे बाजार प्राथमिक पूँजी बाजार कहे जाते है |

→ द्वितीयक पूँजी बाजार के अंतर्गत स्टॉक एक्सचेंज में होने बाले क्रय विक्रय तथा गिल्ड एज्ड बाजार में होने वाले क्रय विक्रय आते है ।

→ भारतीय पूँजी बाजार में पूँजी के स्त्रोत है: अंश पूँजी पत्र | इसके अतिरिक्त स्त्रोत के रूप में वे संस्थाएं भी है जो वितीय मध्यस्थ की भूमिका निभाती है | ऐसी संस्थाएं है -- मर्चेंट बैंक, म्युचुअल फण्ड, लीजिंग कम्पनियां, जोखिम पूँजी आदि 1

> UTI भारत की सबसे बड़ी म्युचुअल फण्ड संस्था है |

स्टॉक एक्सचेंज एक ऐसी व्यवस्था का बाजार है, जिसमें छोटे निवेशक निवेश कर सकते है तथा मौजूद प्रतिभूतियों का आसानी से कय विक्रय कर सकते है । 

By 
Sidhartha

Tags:- भारत में पत्र मुद्रा पत्र मुद्रा क्या है
 रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया 
भारत में पूंजी बाजार 
यूटीआई स्टॉक एक्सचेंज ऑफ़ इंडिया
 बैंकों का बैंक 
भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना
 रिजर्व बैंक क्या है 
ट्रेजरी बिल क्या है
 ट्रेजरी बिल पहली बार कब लागू किया गया था
 क्षेत्रीय बैंक
 ग्रामीण बैंक 
ग्रामीण बैंक की स्थापना 
भारत में सर्वप्रथम पत्र मुद्रा की स्थापना कब हुई
Rbi kya hai
Rbi ki sthapana
Trejry bill
Tragery bill
Patrmudra kya hai

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने